लोकसभा चुनाव में यूपी में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस ने अपने संगठन की ओवरहॉलिंग करने का फैसला किया है। मुख्य संगठन के साथ ही फ्रंटल संगठन के पदाधिकारियों का भी नए सिरे से चुनाव होगा। किसी भी पद पर अब मनोनयन नहीं होगा। इसके संकेत सभी वरिष्ठ नेताओं को दे दिए गए हैं।
1977 के बाद यूपी में कांग्रेस की इतनी खराब स्थिति कभी नहीं रही। वह अमेठी जैसा गढ़ भी नहीं बचा सकी। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की आक्रामक नीति के कारण कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ता भी या तो दूर होते गए या फिर चुप होकर बैठ गए।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि जब कांग्रेस नेताओं को अमेठी और रायबरेली में अपने कार्यकर्ताओं को निराश न होने और उनकी हौसला अफजाई का काम करना चाहिए, तब वे अपनी पूरी ऊर्जा रायबरेली के जिला पंचायत अध्यक्ष को पदच्युत करने के प्रयास में लगाए हुए थे। वे प्रतिद्वंद्वी की आक्रामकता का ताप महसूस ही नहीं कर पाए।
यूपी में कांग्रेस की इतनी खराब स्थिति के लिए कांग्रेस संगठनों की कमजोर हालत को जिम्मेदार माना जा रहा है। ब्लॉक, तहसील, शहर और जिला स्तर की अधिकांश कमेटियां निष्क्रिय थीं। प्रदेश नेतृत्व भी इस गलतफहमी में था कि जनता में कांग्रेस का संदेश खुद-ब-खुद जा रहा है। ऐसे में कार्यकर्ताओं की मजबूत टीम खड़े किए बिना भी वे बेहतर चुनाव परिणाम हासिल कर लेंगे। वे यह आकलन करने में असफल रहे कि भाजपा जैसे मजबूत संगठन का मुकाबला करने के लिए मास बेस के साथ-साथ उसे अपना काडर बेस भी तैयार करना होगा।